हम आदतों के आदी कैसे बन जाते हैं, आइए जाने

उस विशाल हाथी के बारे में सोचिए जो 1 टन से भी ज्यादा वजन सिर्फ अपने सूंढ़ से उठा लेता है। जरा सोचिए कि उसी हाथी को एक पतली रस्सी और एक छोटे से एक ही जगह पर बांधे रहने का आदी कैसे बना दिया जाता है,

जबकि वह खूंटी को आसानी से उखाड़ कर जहां चाहे वहां जा सकता है? जवाब या है कि बचपन में हाथी को एक मजबूत जंजीर और एक मजबूत पेड़ से बांधा जाता है हाथी के बच्चे की तुलना में जंजीर और पेड़ मजबूत होते हैं

बच्चे को बंधे रहने की आदत नहीं होती इसलिए वह उस जंजीर को खींचने और तोड़ने की लगातार नाकाम कोशिश करता रहता है। एक दिन ऐसा आता है जब वह बच्चा समझ जाता है कि खींचने और तोड़ने की कोशिश करने से कोई फायदा नहीं है

वह रुक जाता है और शांत खड़ा रहने लगता है अब वह दिमागी रूप से इसका आदी हो चुका होता है। और जब वह वही बच्चा एक विशाल हाथी बन जाता है तो उसे एक कमजोर रस्सी और खूंटे से बांध दिया जाता है

वह हाथी चाहे तो एक झटका देने से ही आजाद हो सकता है मगर अब हुआ कहीं नहीं जाता क्योंकि वह बचपन से ही दिमाग हीरो से इसका आदी हो चुका होता है। हम पर जाने अनजाने इन चीजों का असर पड़ता चला जाता है।

जैसे किताबे हम पढ़ते रहते हैं, जैसी फ़िल्में और टीवी प्रोग्राम हम देखते रहते हैं, जैसे संगीत हम सुनते रहते हैं, जैसी संगीत में हम मगर रहते हैं। गाड़ी चलाते समय अगर हम एक ही धुन बहुत दिनों तक सुने और एक दिन टेप रिकॉर्डर खराब हो जाए तो अंदाज लगाइए कि हम कौन सी धुन गुरु न रहे होंगे।

पागलपन की परिभाषा है कि एक ही काम को बार बार किया जाना लेकिन हर बार अलग-अलग नतीजों की उम्मीद रखना। अगर आप वही करते हैं जो आप करते रहे हैं तो आप को वही मिलता रहेगा जो आपको मिलता रहा है।

आदतों को बदलने में सबसे मुश्किल बात यह होती है कि जो चीज काम नहीं कर रही है उसे कैसे बुलाया जाए और उनकी बदले अच्छी आदतों को कैसे अपनाया जाए।

हम आदि कैसे बन जाते हैं?

सोचिए हमने साइकिल चलाना कैसे सीखा इसके 4 हफ्ते पहले स्तर को अवैध चेतन योग्यता कहते हैं या वह स्तर है जब हम यह नहीं जानते कि हम उस काम को नहीं जानते बच्चा या नहीं जानता कि साइकिल चलाना क्या है ना ही वह साइकिल चला सकता है यह वेतन आयोग दास्तां है।

फिर वह साइकिल चलाना सीखना है या 30 रास्ता है जो चीज चेतन योगिता कहलाता है साइकिल चला तो सकता है मगर ऐसा करने के लिए उसे उस प्रक्रिया के बारे में सचेत ढंग से सोचना पड़ता है इस तरह सचेत और प्रयास के साथ बच्चा साइकिल चलाने योग्य है।

चौथा स्तर अवचेतन का है। यह तब आता है जब बच्चे ने पूरी समझ के साथ साइकिल चलाना है इतनी अच्छी तरह से सीख लिया होता है कि उसे अब सचेत रोग से सोचना नहीं पड़ता है यह सिलसिला अपने आप चलने लगता है

साइकिल चलाते समय वह लोगों से बातें कर सकता है और दूसरों को हाथ से इशारा कर सकता है इसका मतलब यह कि वह अवचेतन योगिता के स्तर पर पहुंच गया इस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं होती क्योंकि यह हमारे व्यवहार में खुद बा खुद म लगता है।

हम अपनी सभी अच्छी आदतों को इसी स्तर पर पहुंचाना चाहते हैं। दुख की बात है कि शायद हमारे कुछ बुरी आदतें भी हमारे अवचेतन योगिता के स्तर तक पहुंच जाती है और वे हमारी तरक्की में रूकावट डालती है।

विरोध और बदलाव

जब लोग अपनी बुरी आदतों को पहचान लेते हैं तो उन्हें बदलते क्यों नहीं? उनके ना बदलने का कारण यह है कि वह जिम्मेदारी कबूल करने से इनकार करते हैं।

अपनी आदतों को बनाए रखने में उन्हें जो मजा आता है वह बदलाव के दर्द से ज्यादा होता है उनमें शायद बदलाव की इच्छा की कमी हो या बदलाव के लिए जरूरी अनुशासन की कमी हो या अपने आप को बदल पाने की विश्वास की कमी हो या बदलाव की जरूरत के बारे में जानकारी की कमी हो ‌।

यह सारी बातें हमें बुरी आदतों से पीछा छुड़ाने से रोकती हैं हम सब को एक चुनाव करने का हक है हम बुरे व्यवहार को नजरअंदाज करते हुए यह आशा करते सकते हैं

कि इससे हम खुद ब खुद छुटकारा मिल जाएगा या शुतुरमुर्ग की तरीका हुआ या इसका मुकाबला करके इस पर पूरी जिंदगी के लिए काबू पा सकते हैं बेबुनियाद और अपनी आरामदायक जिंदगी को दायरे से बाहर निकाल कर ही आदतों में सुधार किया जा सकता है।

याद रखिए उधर एक सीखी हुई आदत है और इससे छुटकारा पाया जा सकता है। अपनी बुरी आदतों को ना बदलने के बड़े आम बहाने नीचे लिखे हुए हैं। हम लोग हमेशा इसी तरह करते आए हैं। हमने इस तरह कभी नहीं किया है।

यह मेरा काम नहीं है। मैं नहीं समझता कि इससे कोई फर्क पड़ेगा। मैं बहुत बिजी आदमी हूं।

अच्छी आदत को कैसे बनाएं?

बदलाव किसी भी समय लाया जा सकता है चाहे हमारी उम्र कुछ भी हो गया आदत कितनी ही पुरानी हो अगर हमें मालूम हो कि क्या बदलाव की जरूरत है तो व्यवहार बदलने वाले तरीकों का इस्तेमाल करके हम किसी भी वक्त बदलना और ला सकते हैं एक पुरानी कहावत है कि बूढ़े कुत्ते को कई करा बतिया नहीं सिखाया जा सकता।

हम लोग कुत्ते नहीं इंसान हैं और हम कलाबाजी नहीं कर रहे हैं हम बुरी और नुकसान पहुंचाने वाले आदतों से छुटकारा पा सकते हैं और अच्छी आदतें डाल सकते हैं।

जैसा कि सफल लोगों का राज क्या है कि उन कामों को करने की आदत डाल लेते हैं जो असफल लोग करना नहीं चाहती और ना ही करते हैं जरा उन चीजों के बारे में सोचिए और सब असफल लोग नहीं करना चाहते।

यह वही काम है जिन्हें सफल लोग भी करना नहीं चाहते लेकिन वह फिर भी करते हैं मिसाल के तौर पर असफल लोग अनुशासन और मेहनत करना पसंद नहीं करते सफल लोग भी अनुशासन और कड़ी मेहनत एक खिलाड़ी रोज सुबह उठकर प्रैक्टिस करने का अनुशासन ना तो चाहता है

ना ही पसंद करता है फिर भी ऐसा नियमित रूप से करता है। ना पसंद करते हैं फिर भी ऐसा करते हैं क्योंकि इन लोगों ने उन कामों को करने की आदत डाल ली है

जो असफल लोग नहीं कर पाते हैं। तो दोस्तों अच्छी आदतें अच्छे काम कभी भी आप कर सकते हैं कभी भी आप अपने आप को बदल सकते हैं।

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