
ब्रह्मांड में अनेक प्रकार की छलिया है। चमक छल कपट कर्मों में धोत्र क्रीडा सर्वोपरि और या कृष्ण का प्रतीक है। परमेश्वर के रूप में कृषि किसी की सामान्य पुरुष की अपेक्षा अधिक कपटी हो सकते हैं यदि किसी से छल करने की सोच लेते हैं तो कोई उनसे पार नहीं पा सकता। उनकी महानता एकांगी ना होकर सर्वांगी है। वह बिजली पुरुषों की विजय हैं वह तेजस्वी के तेज हैं साहित्य तथा कर्मठ है। हुए बलवान ओं में सर्वाधिक बलवान है जब धरा धाम में विद्यमान थे तो कोई भी उन्हें बल में हरा नहीं सकता था यहां तक कि अपने बाल्यकाल में उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठा लिया था उन्हें ना तो कोई छल में हरा सकता है ना तेज में नतीजे में ना साहस तथा न वल में।
वासुदेव के कौन-कौन पुत्र थे
कृष्णा जी भगवान है और बाल बलदेव कृष्ण के निकटतम विस्तार हैं किस तथा बलदेव दोनों ही वसुदेव के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए थे अतः दोनों को वासुदेव कहा जा सकता है दूसरी जिससे चौकी कृष्ण कभी वृंदावन नहीं त्याग तथा उनकी जितनी भी रूप है अनंत पाए जाते हैं
वे उनके विस्तार हैं वासुदेव कृष्ण के निकटतम विस्तार हैं अतः वासुदेव इन नहीं है अतः इस क में वासुदेव शब्द का अर्थ बलराम माना जाना चाहिए क्योंकि अवतारों के नाम है और इस प्रकार के वासुदेव की एकमात्र उद्गम है भगवान के निकटतम अंधविश्वास कहते हैं और अन्य प्रकार के भी अंश है जो विभिन्न कहलाते हैं।
पांडव पुत्रों में अर्जुन धनंजय नाम से विख्यात हैं व समस्त पुत्रों में पुरुषों में श्रेष्ठतम है आता है मुनियों की अर्थात वैदिक ज्ञान में विद्वानों में सबसे बड़े हैं क्योंकि उन्होंने कलयुग में लोगों को समझने के लिए वैदिक ज्ञान को अनेक प्रकार से प्रस्तुत किया और व्यास को पुलिस की एक अवतार भी माने जाते हैं
अतः विकृत रूप हैं कभी कारण किसी विषय पर गंभीरता से विचार करने में समर्थ हैं होते हैं कवियों में उतना अर्थात शुक्र असुरों के गुरु थे अधिक बुद्धिमान तथा दूरदर्शी राजनेता थे इस प्रकार शुक्राचार्य कृष्ण की के दूसरे स्वरूप है।
परमात्मा और ब्रह्मांड
परमात्मा के रूप में ब्रह्मांड की समस्त वस्तुओं में प्रवेश कर जाने के कारण परमेश्वर का सारे भौतिक जगत में प्रतिनिधित्व है भगवान यहां पर अर्जुन को बताते हैं कि या जाने की कोई सार्थकता नहीं है कि सारी वस्तुएं किस प्रकार अपने प्रथक -प्रथक इस तरह था उत्कर्ष में स्थित है
उसे इतना ही जान लेना चाहिए कि सारी वस्तुओं का अस्तित्व इसलिए है क्योंकि किस उम्र में परमात्मा स्वरुप में प्रविष्ट होते हैं ब्रह्मा जैसे विराट जीवन से लेकर एक चींटी तक इसलिए विद्यमान है
क्योंकि भगवान उन सब में प्रविष्ट होकर उनका पालन करते हैं! एक ऐसी धार्मिक संस्था भी है जो यह निरंतर प्रचार करती है कि किसी भी देवता की पूजा करने से भगवान या परम लक्ष्य की प्राप्त होगी किंतु यहां पर देवताओं की पूजा को पूर्णता निरस्त ऐसा ही किया गया है
क्योंकि ब्रह्मा तथा शिव जैसे महानतम देवता भी परमेश्वर की विभूति के अंश मात्र हैं वह समझ उत्पन्न नदियों के उद्गम है और उनके बढ़कर कोई भी नहीं है
वह असंभव है जिसका अर्थ है कि ना तो कोई उनसे श्रेष्ठ है ना उनके पुल पांडू पुराण में कहा गया है कि जो लोग भगवान कृष्ण को देवताओं की कोर्ट में चाहे वह ब्रह्मा शिव ही क्यों ना हो मानते हैं खाली हो जाते हैं
किंतु यदि कोई ध्यान पूर्वक कृष्ण की विभूतियों एवं उनकी शक्ति के अंशों का अध्ययन करता है तो वह बिना किसी संशय के भगवान श्री कृष्ण की स्थिति को समझ सकता है और अभी चल भाव से कृष्ण की पूजा में स्थिर हो सकता है
।भगवान अपने अंश के विस्तार में परमात्मा रूप में सर्वव्यापी हैं जो हर विद्यमान वस्तु में प्रवेश करता है अतः शुद्ध भक्तों पूरी भक्ति में कृष्ण भगवान मृत में अपने मन को एकाग्र करते हैं अध्यक्ष पद में स्थित रहते हैं
इस अध्याय के श्लोक से कृष्ण की भक्ति तथ पूजा का स्पष्ट संकेत सही विधि है इस अध्याय में इसकी व्याख्या की गई है भगवान सच में किसी प्रकार प्राप्त कर सकता है परंपरा के महान श्री कृष्ण महाभारत काव्य के एक मेन किरदार निभाया है श्री कृष्ण प्रमाण स्वरूप व्याप्त होकर इसको धारण करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण की लीला अपरंपार है उन्होंने।
श्री कृष्णा के समस्त कारण
एक कहानी ने श्रीकृष्ण के समस्त कारणों के कारण के रूप में दिखाया गया है यहां तक कि वह उन महाविष्णु के भी कारण स्वरूप हैं जिनसे भौतिक ब्रह्मांड ओं का उद्भव होता है कृष्ण अवतार नहीं है
वह समस्त अवतारों के उद्गम है इसकी पूरी व्याख्या यहां पढ़ने और देखने को मिलेग। अब जहां तक अर्जुन की बात है उसका कहना है कि उसका मुंह दूर हो गया है इसका अर्थ यह हुआ कि वह किस को अपना मित्र स्वरूप सामान्य मनुष्य नहीं मानता अपितु उन्हें प्रत्येक वस्तु का कारण मांगता है
अर्जुन अद्भुत हो चुका है और उसे प्रसन्नता है कि उसे कृष्णा जैसा मित्र मिला है किंतु अफवाह यह सोचता है कि भले ही वह कृष्ण को हर एक वक्त का कारण मान लें किंतु दूसरे लोग नहीं मानेंगे अतः इस तरह वास्ता करने के लिए कैंडी क्रश इतने दयालु हैं कि इस स्वरूप दिखाने के तुरंत बाद हुए अपना मूल रूप धारण कर लेते हैं
अर्जुन कृष्ण के इस कथन को बार-बार स्वीकार करते हैं कि वह उसके लाभ के लिए ही सब कुछ बता रहा है अतः अर्जुन को स्वीकार करते हैं कि यह सब कृष्ण की कृपा से घटित हो रहा है अब उसे पूरा विश्वास हो चुका है कि क्रिसमस कारणों के कारण हैं और परमात्मा के रूप में प्रत्येक जीव के हृदय में विद्यमान है।
एक बार देवी दर्शन हुआ नहीं कि कुछ तथा अर्जुन के परम प्रेम संबंध तुरंत बदल गए अभी तक किस तथा अर्जुन में मैत्री संबंध था किंतु दर्शन होते ही अर्जुन अत्यंत आदर पूर्वक प्रणाम कर रहा है और हाथ जोड़कर किसी से प्रार्थना कर रहा है वह उनके विश्वरूप की प्रशंसा कर रहा है
इस प्रकार अर्जुन का संबंध मुख्तार कायनात रहता आश्चर्य का बन जाता है बड़े-बड़े भक्तों को समस्त बंधुओं का आभार मानते हैं शास्त्रों में 12 प्रकार के संबंधों का उल्लेख है और
यह सब श्रीकृष्ण में निहित है या कहा जाता है कि कोई भी दो जिओ के बीच देवताओं के बीच या भगवान तथा भक्तों के बीच के पारंपरिक आदान-प्रदान होने वाले संबंधों के सागर हैं
यहां पर अर्जुन आश्चर्य संबंध से प्रेरित है और उसने वह अत्यंत गंभीर तथा शांत होते हुए भी अत्यंत हल दायित्व को उठा उसके रोम रोम खड़े हो गए और वह हाथ जोड़कर भगवान की प्रार्थना करने लगा निसंदेह भयभीत नहीं था वह भगवान के आश्चर्य से अभिभूत था इस समय तो उसके समाचार था और उसके क्रीम हमसे अधिकार हो गए।