
उत्पादकता व व्यापारी पूंजी की मांग उत्पादन कार्य के लिए करते हैं जबकि अन्य लोग उपभोग विवाह भोज तथा अन्य अवसरों के लिए भी पूंजी की मांग करते हैं।
सरकार अपनी विकास योजना को पूरा करने के लिए पूंजी की मांग कर आती है देश में पूंजी की संपूर्ण मांग में उत्पादकता कार्यों के लिए मांग व अनुवादक कार्यों के लिए मांग सम्मिलित होती है।
परंतु उत्पादकता कार्य हेतु पूंजी की मांग अन उत्पादकता कार्यों हेतु पूंजी की मांग की अपेक्षा अधिक होती है पूंजी की उत्पादकता के कारण ही पूंजी की मांग की जाती है तथा उसके स्वामी को उसके बदले में ब्याज दिया जाता है पूंजी की सीमांत उत्पादकता ब्याज की अधिकतम सीमा होती है।
पूंजी की पूर्ति कैसे करें
पूंजी की पूर्ति बचत पर निर्भर करती है। पूंजी की बचत के लिए पूंजी पतियों को अपनी कुछ आवश्यकताओं का त्याग करना पड़ता है। अतः यह क्या का कष्ट जिसकी पूंजी की बचत के लिए और सकता है एक प्रकार से पूंजी की लागत है। सीमांत लागत ब्याज की न्यूनतम सीमा है।
पूंजी की मांग और पूंजी की पूर्ति
जैसा कि स्पष्ट किया जा चुका है ब्याज की अधिकतम सीमा पूंजी की सीमांत उत्पत्ति है तथा न्यूनतम सीमा पूंजी की पूर्ति का सीमांत उत्पादन है
अतः ब्याज की दर वहां निर्धारित होगी जहां पर पूंजी की कुल मांग पूंजी की कुल पूर्ति के बराबर होगी। यही मांग और पूर्ति का संतुलन बिंदु होगा।
यदि ब्याज इससे कम दर पर निर्धारित हो भी जाता है तो पूंजी की पूर्ति धीरे धीरे कम हो जाएगी तथा फिर ब्याज उसी संतुलन बिंदु पर आ जाएगा। इसी प्रकार यदि ब्याज की दर अधिक हो जाती है तो धीरे-धीरे पूंजी की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है जिसके फलस्वरूप या अदर फिर से उसी संतुलन बिंदु पर आ जाएगी।
अतः ब्याज की दर मांग और पूर्ति की समय बिंदु पर निर्धारित होगी।
आइए पूंजी का अर्थ एवं उसका उदाहरण समझे
साधारण बोलचाल में पूंजी शब्द का अर्थ रुपए पैसे धन-संपत्ति अथवा मुद्रा से लगाया जाता है परंतु अर्थशास्त्र में पूंजी का अर्थ अत्यधिक व्यापक है। आर्थिक दृष्टि से पूंजी मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग है जिसका प्रयोग अधिक मात्रा में धन का उत्पादन करने के लिए किया जाता है।
1. प्रो० मार्शल के अनुसार प्राकृतिक के निशुल्क उपहारों को छोड़कर वह सब संपत्ति जिसके द्वारा और अधिक आय प्राप्त की जा सकती है वह पूंजी कहलाती है।
2. प्रो० थॉमस के अनुसार भूमि को छोड़कर पूंजी व्यक्ति तथा समाज की संपत्ति विभाग है जिसके प्रयोग से अधिक मात्रा में धन प्राप्त किया जा सकता है।
3. प्रो० फिशर के शब्दों में पूंजी व संपत्ति है जो मनुष्य द्वारा किए गए पहले के श्रम का प्रणाम है, परंतु जिसका उपयोग साधन के रूप में अधिक उत्पादन के लिए किया जाता है।
4. चैंप मैन के अनुसार पूंजीवाद धन है जो आय प्रदान करता है या आय के उत्पादन में सहायक होता है या जिसका इसी प्रकार उपयोग करने का इरादा है।
पूंजी उत्पादन का एक प्रमुख साधन है आधुनिक युग में पूंजी के बिना उत्पादन संभव ही नहीं है उत्पादन के लिए पूंजी ही कच्चा माल मशीनों व यंत्र आदि जुटाती है। पूंजी ही वस्तुओं के उत्पादन में निरंतरता बनाए रखने में सहायक है।
स्थानीय संस्था क्या है
स्थानीय संस्थाओं से आशय जिला परिषद नगर निगम नगर परिषद नगर संपत्ति व ग्राम पंचायत आदि से है यदि स्थानीय सरकारों का कार्यक्षेत्र केंद्र एवं राज्यों की तुलना में छोटा होता है
और इनकी समस्याओं के आधार पर तथा तीव्रता भी अपेक्षाकृत कम होते हैं तभी इन सरकारों के कार्यों को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है वास्तव में यह संस्थाएं अपने क्षेत्र के नागरिकों को प्रत्यक्ष सेवाएं प्रदान करती हैं।
यह संस्थाएं लोकतांत्रिक शासन की प्राथमिक पाठशालाएं है। अलग-अलग स्थानीय संस्था होती हैं जो नीचे दिए गए हैं,,,
1. जिला परिषद
जिला परिषदों का कार्यक्षेत्र एक जिला होता है। इसके अंतर्गत जिले का संपूर्ण ग्रामीण क्षेत्र आता है इन प्रश्नों के मुख्य कार्य सड़कों का निर्माण व मरम्मत शिक्षा की व्यवस्था मानव व पशु चिकित्सालय की व्यवस्था दुर्भिक्ष निवारण कार्य विश्राम ग्रहों की स्थापना प्रशिक्षण व्यवस्था मेलों पर नियंत्रण बाजार व्यवस्था तथा साफ सफाई व्यवस्था आदि आते हैं।
2. नगर निगम और महानगर पालिका
नगर निगम बड़े नगरों जैसे लखनऊ कानपुर आगरा वाराणसी इलाहाबाद बरेली मेरठ आदि की व्यवस्था करते हैं। यह प्राया वही कार्य करते हैं जो नगर परिषदें करती हैं अंतर केवल इतना ही है कि यह अधिक शक्तिशाली होती हैं
इनका कार्य क्षेत्र अधिक विस्तृत होता है इन्हें कर लगाने तथा वसूल करने के अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं तथा इन पर राज्य सरकार का इतना नियंत्रण नहीं होता जितना कि नगर परिषद ऊपर होता है।
3. नगर परिषद
नगर परिषद का कार्यक्षेत्र एक नगर होता है नगर की सीमाओं के अंदर रहते हुए ही व अनेक कार्यों को संपन्न कराती है चिकित्सालय की व्यवस्था प्राइमरी स्तर से लेकर उच्च स्तर तक शिक्षा की व्यवस्था मेलावा नुमाइश ओं की व्यवस्था सड़क पुल व गलियों का निर्माण व मरम्मत बिजली पानी व सफाई की उचित व्यवस्था आदि होते हैं।
4. ग्राम पंचायत
भारत की शासन प्रणाली प्रजातांत्रिक है। प्रजातंत्र को गांव तक पहुंचाने के उद्देश्य से हमारे संविधान में पंचायती राज की व्यवस्था की गई है। इस दृष्टि से उत्तर प्रदेश सरकार ने सन 1947 में पंचायत राज्य अधिनियम पारित कर के ग्रामों में तीन प्रकार के संस्थाएं स्थापना की-
1. ग्राम सभा
2. ग्राम पंचायत
3. न्याय पंचायत।
इस प्रकार ग्राम पंचायत ग्रामीण की दूसरी इकाई है।
जल विद्युत एवं विकास
राज्य द्वारा ग्रामीण विद्युतीकरण की नीति को लागू करने हेतु तथा पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए गए हैं
नदी घाटी योजनाएं नलकूप निर्माण तथा बिजली घरों की स्थापना आदि विकास कार्यक्रमों पर पर्याप्त बाय किया जाता है।परिवहन व संचार-तार वायरलेस राजकीय परिवहन व संचार कीमतों पर भी प्रदेश सरकार द्वारा पर्याप्त व्यय किया जाता है।
विशेष एवं पिछड़े हुए क्षेत्र इस श्रेणी में कुमाऊं व गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्र आते हैं इन क्षेत्रों के विभिन्न विकास कार्यक्रमों पर राज्य सरकार द्वारा अतिरिक्त व्यय किया जाता है।
सामुदायिक विकास सेवाएं, राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर सामाजिक व आर्थिक असमानता को काम करने के लिए अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं जिन पर उन्हें अत्यधिक धनराशि का व्यय करना पड़ता है।
चिकित्सा सार्वजनिक स्वच्छता स्वास्थ्य व परिवार कल्याण के लिए राज्य सरकार चिकित्सा परिवार नियोजन वाह सर्वजनिक स्वच्छता एवं स्वास्थ्य पर बहुत अधिक व्यय करती है।
कृषि संबंधी विकास के लिए कृषि विकास कार्यक्रमों के अंतर्गत हम मुख्य रूप से कृषि पशुपालन सहकारिता लघु सिंचाई भू संरक्षण मत्स्य पालन डेयरी उद्योग इत्यादि मधु को सम्मिलित करते हैं
राज्य सरकार इन मदों पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए बाय करती है। शिक्षा और कला एवं संस्कृति के लिए शिक्षा के अंतर्गत प्राथमिक माध्यमिक व उच्च शिक्षा तकनीकी प्रावैगिक वाह चिकित्सा शिक्षा आदि सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक विकास पर भी सरकार पर्याप्त रिया काम करती है।