
पर्यावरण समस्याओं को दूर कर विकास का मार्ग प्रशस्त करने के विषय में अब तक कुछ बुद्धिजीवी वर्ग ही समझ पाए हैं और भविष्य के विषय में उन्होंने कई प्रश्न उठाए हैं जैसे हम किस ओर बढ़ रहे हैं
भविष्य का मुख्य केंद्र भावी पीढ़ी के प्रति उत्तरदायित्व का है प्रश्न का या है की वर्तमान जनसंख्या भविष्य की पीढ़ी के प्रति स्वयं का उत्तरदायित्व किस प्रकार निभाती है
क्या हम स्वयं के आर्थिक विकास को रोककर भावी पीढ़ी को स्वस्थ पर्यावरण और अधिक प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध करा सकेंगे।
हम स्वयं को आर्थिक सामाजिक विकास से नहीं रोक सकते अतः पर्यावरण की स्वच्छता एवं विकास का नया मार्ग प्रशस्त करने के लिए जन सामान्य पर्यावरण प्रबंध और पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित स्वभाविक प्रवृत्तियों को जागृत करना होगा।
पर्यावरण की सुरक्षा एवं गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए उसके संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना होगा वर्तमान में मृदा वायु जल वन एवं वन्य जीव जंतुओं के संरक्षण पर ध्यान देना आवश्यक है।
इनके संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न नीतियां एवं कार्यक्रम संचालित करने होंगे तभी हम पर्यावरण का प्रभावी संरक्षण कर सकते हैं पर्यावरण विज्ञान एवं जन जागरण।
पर्यावरण का ज्ञान और जन जागरण
मनुष्य पर्यावरण के सभी तत्वों से भलीभांति परिचित है। प्राकृतिक परिवर्तनों को तो मनुष्यता ही है जैसे मौसम परिवर्तन के साथ बाढ़ भूकंप सुखा काल तूफान आदि से मनुष्य ही नहीं बल्कि सभी प्रकार की जीवधारी प्रभावित होते हैं। प्राकृतिक तो मूकदर्शक है, परंतु मनुष्य वचाल है।
प्राकृतिक दीर्घकालिक है जबकि मनुष्य क्षणभंगुर तो भी मनुष्य को अपने स्वच्छ पर्यावरण की कोई चिंता ही नहीं है। प्रकृति के सौंदर्य की सुरक्षा और पेड़ पौधों के महत्व विषय में प्राचीन काल से ही प्राकृतिक बोध को जन-जन तक पहुंचाने में धर्म एवं सामाजिक नियमों का सहारा लिया जाता था।
आजा धार्मिक के प्रभावहीन हो जाने के कारण पर्यावरण बोध में निर्बल पड़ गया है इसी कारण ऐसी विधा को जागृत करने की आवश्यकता है जहां धार्मिकता द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण और परिस्थिति सुरक्षा हो जाती है। उदाहरण के लिए आज भी भारत में कई ऐसे आदिवासी समाज में है जो झुरमुट को पवित्र मनाते हैं तथा वृक्षों की पूजा करते हैं।
पर्यावरण के बोध
पर्यावरण बोध से तात्पर्य मानव के उस आचरण से है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर विकास का मार्ग खोजते हैं। पर्यावरण के प्रति जन जागरण का सूक्ष्म परंतु आधारभूत आयाम पर्यावरण बहुत ही है।
पर्यावरण बोध से प्रेरित व्यक्ति ही जनमानस में प्राकृतिक एवं मनुष्य के स्वच्छ संबंधों को व्यक्तियों तक पहुंचाने का प्रयास करता है पर्यावरण के संबंध में जन जागृत और पर्यावरण बोध एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
ग्रामीण लोग शहरों की तुलना में पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक होते हैं क्योंकि ग्रामीणों को पर्यावरण की गुणवत्ता का अधिक ज्ञान होता है इसका प्रमुख कारण है कि उनका जीवन कृषि रोपण तथा पेड़ पौधों से संबंधित होता है
हरियाली पेड़ पौधे की संलिप्तता के कारण उन्हें पर्यावरणीय समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। इसके साथ ही वह धार्मिक भावना से भी जुड़े होते हैं। पीपल बरगद तुलसी आज के पेड़ पौधे की पूजा वे करते हैं।
इन पेड़ पौधों का शोषण अपराध माना जाता है यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्र नगरों की तुलना में विभिन्न पर्यावरण समस्याओं से मुक्त होते हैं।
पर्यावरण की शोध और प्रशिक्षण
पर्यावरण बोध के उचित संचालन के लिए विभिन्न पर्यावरण समस्याओं के निदान से संबंधित शोध आवश्यक है।
यह शोध कार्य पर्यावरण से संबंधित सभी प्रकार के प्रदूषण ओं प्राकृतिक प्रकोप परिस्थितियों विकास पर्यावरण सुधार समाजिक विक्रेता पर होनी चाहिए।
उदाहरण के लिए गंगा यमुना नदियों को प्रदूषित करने में महानगरों का गंदा जल घरेलू पूर कचरा बरसाती नालों का गंदा जल औद्योगिक अपशिष्ट मल मूत्र बथुआ स्नान आदि सबसे बड़े कारण हैं।
यह तो सभी जानते हैं कि इसे पुरस्कृत करने पर स्वच्छ जल की प्राप्ति हो सकती है परंतु स्थाई समाधान के लिए खोज एवं अनुसंधान अति आवश्यक है।
यद्यपि गंगा एवं यमुना नदी के जल को प्रदूषित होने से बचाने हेतु कुछ पर योजनाएं सरकार द्वारा चलाई गई हैं।
वैज्ञानिकों का पर्यावरण को सुरक्षित करने का प्रबंध
पर्यावरण सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक कुशल तम प्रबंध आवश्यक है वैज्ञानिक कुशलता के कारण ही तकनीकी विकास में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सूचनाओं का आदान प्रदान किया जा सकता है।
विकास की दौड़ में उत्पादन वृद्धि के लिए ऐसी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है जिसमें परिस्थिति की गुणवत्ता खतरे में पड़ गई है।
इसके लिए तकनीकी परिमार्जन की आवश्यकता है पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा की कोचिंग प्रस्तावित किया गया है जो उत्पादक पर्यावरण की स्वच्छता को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं
या चीनी उत्पादों को दिया जाता है और यह उत्पाद पर्यावरण की दृष्टि से उच्च कोटि के माने जाते हैं।
पर्यावरण की तकनीकी योजना
आज विश्व भर में पर्यावरण सुधार संबंधित तकनीकों विकास ने समझौता रखना अति आवश्यक है।
वास्तव में मानव एवं प्रकृति का संबंध तकनीकी सीमाओं में आबाद हो गया है उदाहरण के लिए भारत में गंगा सफाई अभियान को ही लिया जाए। सन 1985 ईस्वी में भारत सरकार ने अभियान आरंभ किया।
गंगा में गिरने वाले सभी नगरों के नालों को बाधित कर सफाई संयंत्र से जोड़ने और जल साफ कर गंगा में गिराने का कार्यक्रम आरंभ किया गया। इसके लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है
जिससे एक साथ अनेक लाभ प्राप्त किए जा सके तकनीकी योजना द्वारा मल से जैविक खाद एवं विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है यह तकनीकी योजना एवं विकास का परिणाम है कि अब अपशिष्ट दूसरों को तकनीकी द्वारा उपयोगी बनाया जा सकता है।
इसी प्रकार मोटर गाड़ियों के धुएं से होने वाले प्रदूषण के लिए नई तकनीकी विकसित की गई है। इससे पेट्रोल में निहित शीशा पृथक किया जाता है। तकनीकी विकास द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण सुधार संबंधित कार्य किया जा सकता है।
भारत सरकार का पर्यावरण एवं वन मंत्रालय विभिन्न पर्यावरण व मालिकों कार्यक्रम के नियोजन संवर्धन संबद्यम और क्रियान्वयन के लिए देश प्रशासनिक ढांचे में एक केंद्रीय संस्था के रूप में कार्य करता है।
मंत्रालय को देश में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय संभावित पर्वत विकास केंद्र के लिए केंद्रीय एजेंसी के रूप में नामित किया गया है तथा संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एवं विकास सम्मेलन की अनुवर्ती कार्यवाही पर ध्यान देना भी इसी का कार्य है।
इस मंत्रालय पर बहुत सी ए निगाहों से संबंधित मामलों का भी उत्तरदायित्व है जैसे सतत विकास आयोग वैश्विक पर्यावरण सुविधा और पर्यावरण से संबंधित जुड़ी हुई क्षेत्रीय इकाइयां जैसे एशिया एवं प्रशांत के लिए आर्थिक सामाजिक परिषद तथा दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन।।