क्या आप जानते हैं न्यायाधीश के कार्य पर कोई भी चर्चा नहीं की जा सकती By StudyThink

संविधान एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आचरण पर संसद अथवा राज्य विधान मंडल में चर्चा पर प्रतिबंध लगता है सिवाय उस स्थित के जब संसद में महाभियोग प्रस्ताव विचाराधीन हो।

आइए जाने उच्च न्यायालय की न्याय क्षेत्र और शक्तियां

उच्चतम न्यायालय की तरह ही उच्च न्यायालय को भी व्यापक एवं प्रभावी शक्तियां दी गई हैं या राज्य में अपील करने का सर्वोच्च न्यायालय होता है यह नागरिकों के मूल अधिकारों का रक्षक होता है इसके पास संविधान की व्याख्या करने का अधिकार होता है इसके अलावा इसकी पर्यवेक्षक एवं सलाहकार की भूमिका होती है। संविधान में उच्च न्यायालय की शक्तियां एवं क्षेत्राधिकार के बारे में विस्तृत उपबंध नहीं किए गए। इसे संविधान में त्वरित न्यायाधिकरण की तरह बताया गया है इसमें केवल इतना कहा गया है कि एक उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार और शक्तियां वही होगी जो संविधान के लागू होने से तुरंत पूर्व थी लेकिन एक चीज और जोड़ी गई है वह है राजस्व मामलों पर उच्च न्यायालय की क्षेत्राधिकार जो संविधान पूर्व काल में इसके पास नहीं था संविधान में उच्च न्यायालय को कुछ अतिरिक्त शक्तियां अन्य बंधुओं के द्वारा जैसे न्यायाधीश पर्यवेक्षण कि शक्ति परामर्श की शक्ति आदि भी दी गई है। इसके अलावा या संसद और राज्य विधानमंडल को उच्च न्यायालय की शक्तियां एवं न्याय क्षेत्र के परिवर्तन की शक्तियां देता है।

अपराधिक मामले पर अपील कैसे करें आइए जाने

अपराधिक मामले की अपील उच्च न्यायालय का अपराधिक मामलों के क्षेत्राधिकार निम्नलिखित हैं-1. सत्र न्यायालय और अतिरिक्त सत्र न्यायालय के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय मैं तब अपील की जा सकती है जब किसी को 7 साल से अधिक सजा हुई हो या भी ध्यान रखने योग्य बात है कि सत्र न्यायालय या अतिरिक्त सत्र न्यायालय द्वारा दी गई सजा-ए-मौत आमतौर पर मृत्युदंड के रूप में जाना जाता है, परंतु कार्यवाही से पहले उच्च न्यायालय द्वारा इसकी पुष्टि की जानी चाहिए चाहे सजा पाने वाले व्यक्ति ने कोई अपील की हो या ना की हो।2. आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 में कुछ मामलों में उल्लिखित सहायक सत्र न्यायाधीश नगर दंडाधिकारी या अन्य दंडाधिकारी के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

दोनों सदनों की संयुक्त बैठक कैसे होती है आइए जाने

किसी विधेयक पर गतिरोध की स्थिति में संविधान द्वारा संयुक्त बैठक की एक असाधारण व्यवस्था की गई है यह निम्नलिखित तीन में से किसी एक परिस्थिति में बुलाई जाती है जब एक सदन द्वारा विधेयक पारित कर दूसरे को भेजा जाता है-

1. यदि विधेयक को दूसरे सदन द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया हो।

2. यदि सदन विधेयक में किए गए संशोधनों को माननीय से असमर्थ हो।

3. दूसरे सदन द्वारा दिनांक विधेयक को पास की 6 महीने से ज्यादा समय हो जाए।

उपरोक्त इन परिस्थितियों में विधायक को निपटाने और इस पर चर्चा करने और मत देने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की बैठक बुलाती है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त बैठक साधारण विधेयक या वित्त विधेयक के मामले में ही आहुति की जा सकती है तथा संविधान संशोधन के बारे में इस प्रकार की संयुक्त बैठक आहूत करने की कोई व्यवस्था नहीं है। धन विधेयक के मामले में संपूर्ण शक्तियां लोकसभा को है जबकि संविधान संशोधन विधेयक के बारे में विधेयक को दोनों सदनों से अलग-अलग पारित होना आवश्यक है।

6 माह की अवधि में उस समय को नहीं गिना जाता जब अन्य सदन में चार क्रमिक दिनों हेतु सत्रावसान या स्थगन रहा हो। यदि कोई विधेयक लोकसभा विघटन होने के कारण छूट जाता है तो संयुक्त बैठक नहीं बुलाई जा सकती लेकिन संयुक्त बैठक तब बुलाई जा सकती है जब राष्ट्रपति इस प्रकार की बैठक की नोटिस देते हैं जो लोकसभा विघटन से पूर्व जारी कर दिया गया हो राष्ट्रपति द्वारा इस प्रकार का नोटिस देने के बाद कोई भी सदन इस विधेयक पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकता है। दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है तथा उसकी अनुपस्थित में उपाध्यक्ष याद आयुक्त निभाता है। यदि उपाध्यक्ष भी अनुज पर अनुपस्थित हो तो राज्यसभा का उपसभापति दायित्व निभाता है यदि राज्यसभा का उपसभापति भी अनुपस्थित हो तो संयुक्त बैठक में उपस्थित सदस्यों द्वारा इस बात का निर्णय किया जाता है कि इस संयुक्त बैठक की अध्यक्षता कौन करेगा। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि साधारण स्थिति में इस संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता राज्य सभा का सभापति नहीं करता क्योंकि वह किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है।

संविधानिक शक्तियां एवं उनके कार्य आइए जाने और समझे

सांसद में संविधान संशोधन शक्तियां निहित है तथा वह संविधान में किसी भी प्रावधान को जोड़कर समाप्त करके या संशोधित करके इन में संशोधन कर सकती है। संविधान के मुख्य भागों को विशेष बहुमत द्वारा संशोधित किया जा सकता है संविधान की कुछ अन्य व्यवस्थाओं को साधारण बहुमत द्वारा सांसद बदल सकती है। यह बहुमत संसद में उपलब्ध सदस्यों के बीच से तय होता है कुछ व्यवस्थाएं ही ऐसी है जिसे सांसद विशेष बहुमत एवं करीब आधे राज्य विधान मंडलों साधारण बहुमत की सहमति के बाद ही संशोधित कर सकती हैं। कुल मिलाकर सांसद संविधान को तीन प्रकार से संशोधित कर सकती है कुछ ही संशोधन ऐसे हैं जिन्हें संसद विशेष बहुमत एवं आधे से अधिक राज्यों की सहमति से ही संशोधित कर सकती है। हालांकि संविधान संशोधन की प्रक्रिया की शुरुआत पूर्णता सांसद पर निर्भर करती है ना कि राज्य विधानमंडल ऊपर। इसका केवल एक अपवाद है वह है कि कोई भी राज्य इस आशय का प्रस्ताव पारित कर सकता है कि अमुक राज्य में विधान परिषद का गठन कर दिया जाए या उसे समाप्त कर दिया जाए प्रस्ताव के आधार पर संसद संविधान में आवश्यक संशोधन करती है। संसद तीन प्रकार से संविधान में संशोधन कर सकती है–1. साधारण बहुमत द्वारा। 2. विशेष बहुमत द्वारा। 3. विशेष बहुमत द्वारा लेकिन आधे राज्यों के विधान मंडलों की स्वीकृत के साथ। संसद की यह शक्ति असीमित नहीं है या संविधान के मूल ढांचे की सर्च अनुसार है। दूसरे शब्दों में सांसद संविधान के मूल ढांचे के अतिरिक्त किसी भी व्यवस्था को संशोधित कर सकती है। यह निर्णय उच्चतम न्यायालय की केशव नंद भारती मामले 1973 एवं मिनर्वा मिल मामले 1980 में दिया था। तो दोस्तों हमने आज जाना संविधान की शक्तियां और उनके कार्य कैसे और किस तरह होते हैं।

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