आप कैसे भी हो लेकिन आपके अंदर हर प्रकार की श्रद्धा और इच्छा पाई जा सकती है By – StudyThink

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आइए जाने प्रत्येक व्यक्ति में चाहे वह जैसा भी हो एक विशेष प्रकार की श्रद्धा पाई जाती है लेकिन उसके द्वारा अर्जित सभाओं के अनुसार उसकी श्रद्धा उत्तम राजा अथवा तामसी कहलाती है इस प्रकार अपनी विशेष प्रकार की श्रद्धा के अनुसार ही व कतिपय लोगों से संगति करता है।

अब वास्तविक तथ्य तो यह है कि जैसा 15 अध्याय में कहा गया है कि प्रत्येक जीव परमेश्वर का अंश है अथवा मुर्दा इन समस्त गुणों से परे होता है लेकिन जब वह भगवान के साथ अपने संबंध को भूल जाता है और मध्य जीवन में भौतिक प्रकृति के संसर्ग में आता है

तो वाह विभिन्न प्रकार की प्रकृति के साथ संगत करके अपना स्थान बनाता है इस प्रकार से प्राप्त कृतिम श्रद्धा तथा स्थित मात्र भौतिक होते हैं भले ही कोई किसी कार्य धारणा या देहातमबौद्ध द्वारा प्रेरित हो लेकिन मुल्लों ताबानी गुड़िया दिव्य होता है

आती हो भगवान के साथ अपना संबंध फिर से प्राप्त करने के लिए उसे भौतिक रूप से कल मत से शुद्ध होना चाहिए यह एकमात्र मार्ग है निर्भय होकर कृष्ण भगवान की भावना में लौटना यदि कोई कृष्ण भगवान की भावना में स्थित हो तो उसका सिद्ध पप्त करने के लिए वह मार्गदर्शक हो जाता है

यदि वह आत्मा साक्षात्कार के इस पद को ग्रहण नहीं करता तो वह निश्चित रूप से प्रकृति के खुद के साथ बह जाता है। इस लो से श्रद्धा शब्द का अत्यंत सार्थक है परमधाम मुल्तान सतोगुण से उत्पन्न होती है मनुष्य की श्रद्धा किसी देवता किसी कृत्रिम ईश्वर या मनो धर्म में होता है लेकिन प्रबल श्रद्धा साबित कार्यों में उत्पन्न होती है

किंतु भौतिक वन्य जीवन में कोई भी कार्य पूर्णता शुद्ध नहीं होता वह सब मृत होते हैं वह शुद्ध सात्विक नहीं होते हैं तो 7 दिन होता है शुद्ध शब्द में रहकर मनुष्य भगवान के वास्तविक सभाओं को समझ सकता है।

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जब तक श्रद्धा पूर्णतः सात्विक नहीं होता है तब तक वह प्रकृति के किसी भी गुण से दूषित हो सकता है। अतिथि की दूषित गुण हृदय तक फैल जाते हैं अतः किसी भी विशेष गुण के संपर्क में रहकर हृदय जिस स्थिति में होता है

उसी के अनुसार श्रद्धा स्थापित हो जाती है। या समझना चाहिए कि यदि किसी का ह्रदय सतोगुण में स्थित है तो उसकी श्रद्धा भी सतों * यदि हृदय रजोगुण में स्थित है तो उसकी श्रद्धा रजो बुरी है

और यदि हृदय तमोगुण में स्थित है उसकी श्रद्धा दमोह पूरी हो जाती है। इस प्रकार हमें संसार में विभिन्न प्रकार की श्रद्धा में मिलती हैं और विभिन्न प्रकार के प्रधानों के अनुसार विभिन्न प्रकार के धर्म होते हैं धार्मिक श्रद्धा का असली सिद्धांत सतोगुण में होती है

लेकिन जो कि हिर्दय कलुषित रहता है अंखियों विभिन्न प्रकार के धार्मिक सिद्धांत पाए जाते हैं श्रद्धा के विभिन्न कारणों की पूजा ही भिन्न भिन्न प्रकार की होती है।

हमारे देश में पूजा करने वालों के प्रकार

हमारे देश में भगवान के विभिन्न ब्रह्म कर्मों के अनुसार पूजा करने वालों के प्रकार बता रहे हैं। शास्त्रों के अनुसार आदेशानुसार केवल भगवान ही पूजनीय हैं लेकिन जो शास्त्रों के आदेशों से अधिक नहीं है या उन पर श्रद्धा नहीं रखते हुए अपने गुण स्थिति के अनुसार विभिन्न वस्तुओं की पूजा करते हैं जो लोग सदुगुडु हैं

वह समानता देवताओं की पूजा करते हैं इन देवताओं में ब्रह्मा शिव धरा अन्य देवता यथा इंद्र चंद्र तथा सूर्य सम्मिलित हैं देवता कई है सतगुरु लोग किसी विशेष विषय से किसी विशेष देवता की पूजा करते हैं। इसी प्रकार जो रजोगुण हैं वह यक्ष राक्षस हो की पूजा करते हैं।

हमें स्मरण है की द्वितीय विश्व युद्ध के समय कोलकाता का एक क्योंकि भला हो कोई समानता किसी प्रबल मनुष्य को ईश्वर के रूप में चुन लेते हैं वह सोचते हैं कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की राह और तरह पूजा जा सकता है और फल एक सा होगा। यहां पर इसका स्पष्ट मानना है

कि रजऊ पुरी लोग ऐसे देवताओं की दृष्टि करके उन्हें पूजते हैं और तमोगुण हैं अंधकार में हैं वह प्रेतों की पूजा करते हैं कभी-कभी लोग किसी मृत प्राणी की कब्र पर पूजा करते हैं मैथुन सेवा में तंबू बुरी मानी जाती है इसी प्रकार भारत के सुदूर ग्रामों में भूतों की पूजा करने वाले हैं हमने देखा है कि

भारत की निम्न जाति के लोग कभी-कभी जंगल में जाते हैं और यदि उन्हें इसका पता चलता है कि कोई भूत किसी फ्रिज पर रहता है तो वह उस वृक्ष की पूजा करते हैं और बलि चढ़ाते हैं यह पूजा विभिन्न प्रकार वास्तव में ईश्वर पूजा नहीं है ईश्वर पूजा तो सभी पुरुषों के लिए है श्रीमद् भागवत ने कहा गया है सप्तम विश्व धाम वासुदेव शब्द वासुदेव की पूजा करता है तात्पर्य है कि जो लोग गुणों से पूर्ण हो चुके हैं

और पद को प्राप्त हैं वही भगवान की पूजा कर सकते हैं निर्वेश वादी सतोगुण में स्थित माने जाते हैं और पंच देवताओं की पूजा करते हैं। विभक्ति जगत में निराकार विश्व विष्णु को खोजते हैं जो सिद्धांतों के कृत्य हैं विश्व कहलाते हैं भगवान के विस्तार हैं लेकिन निर्देश हमारी अत्यंत भगवान में विश्वास ना करने के कारण सोचते हैं कि विष्णु का स्वरूप निराकार है।

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ब्रह्म का दूसरा पक्ष है इसी प्रकार हुई यह मानते हैं कि ब्रह्मा जी रजोगुण के निराकार रूप है अतः कभी-कभी पांच देवताओं का वर्णन करते हैं जो पूज्य हैं लेकिन क्योंकि हुए लोग निराकार ब्रह्म को ही वास्तविक सत्य मानते हैं

इसलिए वे अंततः समस्त पूजा वस्तुओं को त्याग देते हैं निष्कर्ष निकलता है कि प्रकृति में विभिन्न गुणों को विभिन्न वाले व्यक्तियों की संगत में शुद्ध किया जाता है। कुछ पुरुष ऐसे भी हैं जो ऐसी तपस्या की विधियों का निर्माण कर लेते हैं

जिनका वर्णन शास्त्रों में नहीं है उदाहरण था किसी स्वार्थ के प्रयोजन से यथा राजनीतिक कारणों से उपवास करना शास्त्रों में वर्णित नहीं है शास्त्रों में अत्याधुनिक उन्नति के लिए उपवास करने की संतुष्टि है किसी राजनीति या समाज उद्देश्य के लिए नहीं भगवत गीता के अनुसार जो लोग ऐसी समस्याएं करते हैं वह निश्चित रूप से अधूरी हैं

उनके कार्य शास्त्र विरुद्ध हैं और सामान्य जनता के हित में नहीं है। वास्तव में लोग गर्व अहंकार काम तथा बहुत ही भूख के प्रति असत्य के कारण ऐसा करते हैं ऐसा कार्यों से न केवल शरीर की उन तत्वों को बिछू होता है जिनसे शरीर बना है अतीत शरीर के भीतर निवास कर रहे हैं परमात्मा को भी कष्ट पहुंचता है

ऐसे अवैध उपवास से या किसी राजनीतिक उद्देश्य से की गई तपस्या आदि से निश्चय ही अन्य लोगों की शांति भंग होती है उनका उल्लेख वैदिक साहित्य में नहीं है अधूरी व्यक्ति सोचता है कि इस विधि सेवा अपने शत्रु याद पक्षियों को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए बाध्य कर सकता है लेकिन कभी-कभी ऐसा उपवास से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है

यह कार भगवान द्वारा अनुमति नहीं है और कहते हैं कि जो इन कार्यों को प्रेरित होते हैं वह असुर हैं। इसीलिए हमारे देश में कई प्रकार की पूजा करने के प्रबल उपयोग किए जाते हैं। हमें पूजा सिर्फ ईश्वर की करनी चाहिए जिसने हमको बनाया है।

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