
गद्य कार बाणभट्ट अपनी अनुपम काव्य शैली के लिए अमर हैं। कथानक चरित्र चित्रण और भाव की अपेक्षा रस प्रवक्ता पर उनका विशेष आग्रह रहा है। कल्पना की मनोरथ और नूतन उड़ान वक्रोक्तिमय , अभिव्यंजना शिल्प सानुप्रासिक पदावली दीपक उपमा, परी संख्या शैलेश और स्वभावोक्ति की रुचिर योजना बाण की गद्य शैली का श्रृंगार करती है। वह अनंत दुर्लभ है।
बाणभट्ट की वर्णन तथा कला–पूर्ववर्ती समस्त गद्दा कारों की अपेक्षा बाणभट्ट की वर्णन शायरी अपूर्व बिछड़ तथा मनोरम है कथा के भीतर अथांतर की योजना समझौता कथा की देन है। किंतु बाण ने कथा सरिता सागर में प्रयुक्त का के द्वारा खाकी हरिद्वार आगा की गा के द्वारा खाकी और ख के द्वारा गा के द्वारा घ की और घ के द्वारा ङ की कथा कहने की व्यवस्थित पद्धति का आश्रय नहीं लिया। दस कुमार चरित की भांति उत्तम पुरुष ने कथा का वर्णन केवल सुख और महाश्वेता तक ही सीमित है। बेतालपंचविशतिका की अनेक कथाओं का एक ही प्रति बाद से संबंध वाली पत्रिका वालों ने पूर्णता बहिष्कार कर दिया और कदम बरी की मुख्य कथा जवारी द्वारा अन्य पुरुष में वर्णित है जवारी को त्रिकालदर्शी बताकर अन्य पुरुष की प्रणाली के दोषों से भी कथा को बचा लिया है जिससे जवाली का वर्णन स्वयं के अनुभूत वर्णन से भी मार्मिक है सुख द्वारा शुद्र कथ का कथन साहब द्वारा नियोनी परिवर्तन और प्रेमियों के लिए तपस्या आदि लोककथा की अनेक रोगियों का प्रयोग कथा की चार बता की वृद्धि कर कुतूहल को उत्पन्न करता है। कादंबरी का वर्णन वैविध्य दर्शनीय है। निश्चय ही संस्कृत साहित्य में एक से एक बढ़कर स्वर्णकार हुए हैं किंतु बाणभट्ट की भांति कोई निपुण नहीं है। कादंबरी एक अपूर्व चित्रशाला हैं इस कुंज वन की गली में नए-नए रंगों के अनेक लता बितान है प्रलोभन ये अंशु की बोलता है कहीं विंध्याचल की विकट आठवी के रोमांचकारी दृश्य हैं तो कहीं जवान किसान और पावन आश्रम की साध्वी शोभा का चित्र है कहीं शुद्रक और तारा पीर के राजकीय विलास और वैभव का वर्णन है तो कहीं वीणा वंदनी महाश्वेता की बिरहा विधुरा मूर्ति का दर्शन है तो कहीं कामिनी एक कलेवर। कादंबरी के प्रयोग रमन और राजकुमार का नगद चित्रण है। शोध सरोवर तथा हिमालय के भव्य दृश्य का वर्णन प्रभाव वादक है। द्रविड़ यति का वर्णन इस बात का सूचक है कि बाणभट्ट उस सहयोग विषयों का भी सफल अंकन कर सकते हैं इंदिरा युद्ध के सजीव वर्णन से बाण को तुरंग बाण की पदवी मिली। साधारण लोग घटना वर्णन करके कथा आरंभ करते हैं, पर बाणभट्ट चित्र सहित करके कथा बढ़ाते हैं। बाणभट्ट के विस्तृत वर्णन को सुविधा की दृष्टि से तीन रूपों में हम देख सकते हैं—
1.रूप वर्णन
2.घटना वर्णन
3.प्रकृति वर्णन है।
वेद के लोग
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पुराना चंदन ब्रिज जिस प्रकार सरपंच से व्याप्त रहता है उसी प्रकार जटाओं से व्याप्त था और भटकते रहते हैं उसी प्रकार की कानों के बाल लटक रहे थे देव गुरु बृहस्पति जिस प्रकार जन्म से लेकर अपने पुत्र को बढ़ाया था उसी तरह से ही बालों को बड़ा रखा था जिनका प्रारंभ चित्रकार प्रकाशित होता है उसी प्रकार के समान जाबालि का मुख वेदमान था।
वेद काल के बातें-
भयंकर सांप के भय से मानव शरीर का पति है प्रियतमा के समान के शो का ग्रहण करती है खुद के समान रुप भंग करती है उन्मत्त स्त्री के समान गमन में खलल करती है, अभूषण युक्त स्त्री के समान तिलक प्रकट करती है, व्रत धारण करने वाली के समान भास्म धवल देख पड़ती है, जरा बुढ़ापे ने उनका शरीर के शत कर दिया था। जाबालि का भी शरीर शरीर वृद्धा अवस्था के कारण का पति की सो वाला टेढ़ी भाव वाला गिरता पड़ता और काले काले धब्बों को प्रकट करने वाला था।
रघुवंश-
रघुवंश समग्र संस्कृत साहित्य में सर्वोत्कृष्ट महाकाव्य है इस बात को विद्वान एक स्वर में स्वीकार करते हैं इसकी उत्कृष्ट के कारण कालिदास को रघु कर कहा जाने लगा। रघुवंश ने कुल 19 सर गए हैं जिनमें राम एवं उनके वंशजों का सर्वगुण संभावित चरित्र का वर्णन किया गया है। रघुवंश महाकाव्य का नामकरण दशरथ के पिता रघु के नाम पर हुआ है प्रथम तीन शब्दों में रघु के पिता दिलीप का वर्णन 34 वर्ग में रघु की दिग्विजय का वर्णन है। पांचवी सर्ग में बर्तन तू नमक गुरु का शिष्य कौत्स का रंग के समीप गुरु के लिए धन मांगते हैं धन प्राप्त से संतुष्ट का कौत्स के आशीर्वाद से रघु को आज नामक पुत्र की प्राप्ति होती है। छठ: में आज इंदुमती स्वयंवर का वर्णन। सातवें में आज को राज्य समर्पित करके रघु संन्यास लेते हैं आठवें में वर्णित है रंग की मृत्यु को दशरथ नामक पुत्र की प्राप्ति नारद की वीणा से गिरे हुए पुष्प से इंदुमती की मृत्यु एवं आज का मार्मिक हृदय को पिघला देने वाला विलाप। 9 से 12 सरगो में दशरथ एवं राम की कथा। 13वे सर्ग में राम विमान द्वारा सीता के साथ अयोध्या लौटते हैं। 14वें सर्ग में राज्य का प्रारंभ सीतापुर चरित्र संबंधित लांछन गर्भिणी सीता का परित्याग बाल्मिक द्वारा राम की भर्त्सना, अयोध्या में अश्वमेघ यज्ञ का शुभारंभ 15 सर्व में लव कुश का जन्म शत्रुघ्न के द्वारा मथुरा वासी लवणासुर का वध लव-कुश का परिचय पृथ्वी देवी के साथ सीता का चला जाना तथा राम लक्ष्मण आदि का दिव्यगत होना। रघुवंश में कुल 28 राजाओं का वर्णन है।
राष्ट्रीय चिन्ह-
राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन देने के लिए सारनाथ की अशोक की लाट के ऊपरी मुख्य भागों को देश का राष्ट्रीय चिन्ह घोषित किया गया है इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्रगान राष्ट्रीय गीत आज भी संपूर्ण राष्ट्र में पूर्ण सम्मान के साथ स्वीकार किए जाते हैं।
राष्ट्रीय भाषा-
संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्तर प्रदान किया गया था और या व्यवस्था की गई थी कि 1965 ईस्वी तक अंग्रेजों को सा भाषा की स्थिति प्राप्त रहेगी परंतु भाषा की राजनीति के कारण सरकार ने अनिश्चित काल तक अंग्रेजी को सा भाषा के रूप में बने रहने की स्थित प्रदान कर दी वस्तुतः राष्ट्रभाषा से संपूर्ण राष्ट्र में मानसिक एकता विकसित होती है।
सामाजिक समानता-
देश में सामाजिक समानता स्थापित करने के लिए अस्पृश्यता समाप्त की दिशा विशेष प्रयास किए गए हैं इसके अतिरिक्त अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़ी जातियों को संविधान द्वारा विशेष सुविधाएं भी प्रदान की गई।