
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 मैं यह भी प्रावधान है कि मानव अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की तेजी से जांच करने के लिए देश के प्रत्येक जिले में 1 मानव अधिकार न्यायालय स्थापना की जाएगी। इस प्रकार के किसी न्यायालय की स्थापना राज्य सरकार द्वारा केवल राज्य उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर ही की जा सकती है।
प्रत्येक मानव अधिकार न्यायालय में राज्य सरकार एक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करती है या किसी ऐसे वकील को विशेष लोक अभियोजक बना सकती है जिससे कम से कम 7 वर्ष की वकालत का अनुभव हो।
आयोग की कार्यप्रणाली–
आयोग को अपने कार्यों को संपन्न करने के लिए व्यापक शक्तियां प्रदान की गई है इसे एक दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती हैं तथा यह उसी के समान अपनी कार्यवाही को संपन्न करता है यह किसी मामले की सुनवाई के लिए राज्य सरकार या किसी अन्य अधीनस्थ अधिकारी को निर्देश दे सकता है, हालांकि राज्य मानव अधिकार आयोग किसी ऐसे मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है जो मानव अधिकार के उल्लंघन से संबंधित हो तथा जितना मिले को 1 वर्ष से अधिक का समय हो। गया हो दूसरे शब्दों में आयोग केवल 1 वर्ष की अवधि के भीतर मामलों की सुनवाई कर सकता है। आयोग किसी मामले की जांच के दौरान उपरांत निम्न कदम उठा सकता है-
1. या पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति या नुकसान के भुगतान के लिए संबंधित सरकार य प्राधिकरण को सिफारिश कर सकता है।
2. यह दोषी लोक सेवक के विरुद्ध पंजीकरण हेतु कार्यवाही प्रारंभ करने के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण को सिफारिश कर सकता है।
3. या संबंधित सरकार या प्राधिकरण को पीड़ित को तत्काल अंतरिम सहायता प्रदान करने की सिफारिश कर सकता है।
4. आयोग इस संबंध में आवश्यक निर्देश आदेश अथवा के लिए उच्चतम अथवा उच्च न्यायालय में जा सकता है।
इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि आयोग का कार्य विशुद्ध रूप से सलाह कार्य प्रकृति का है इसे मानव अधिकार का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को सजा देने का कोई अधिकार नहीं है तथा य पीड़ित व्यक्ति को अपनी ओर से कोई सहायता या मुआवजा नहीं दे सकता है। ध्यान से देने योग्य तथ्य यह है कि यह आयोग की सलाह को मानने के लिए राज्य सरकार या कोई अन्य अधिकारी बाध्य नहीं है। लेकिन इतना अवश्य है कि आयोग द्वारा दी गई किसी सलाह के बारे में क्या कदम उठाया गया है इस बारे में आयोग को 1 माह के भीतर में सूचना देना अनिवार्य है। आयोग अपना वारसी क्या विशेष प्रतिवेदन राज्य सरकार को प्रेषित करता है इस प्रतिवेदन को राज्य विधायिका के पटल पर रखा जाता है तथा यह बताया जाता है कि आयोग द्वारा दी गई अनुशासन के संबंध में राज्य सरकार ने क्या कदम उठाए हैं यदि आयोग की किसी सलाह को राज्य सरकार द्वारा नहीं माना गया है तो इसके लिए तर्कपूर्ण उत्तर देना आवश्यक है।
आइए जाने सीबीआई के कार्य-
1.सीबीआई के कार्य निम्न है-.केंद्र सरकार के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार घूसखोरी तथा दुराचार आदि मामलों का अनुसंधान करना।
2. राजकोषीय तथा आर्थिक कानूनों के उल्लंघन के मामलों का अनुसंधान करना जैसे आयात निर्यात नियंत्रण से संबंधित कानूनों का अतिक्रमण शुल्क तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क विदेशी मुद्रा विनिमय विनियमन आदि के उल्लंघन के मामले देखती है।
3. पेशेवर अपराधियों के संगठित गिरोहों द्वारा किए गए ऐसे गंभीर अपराधों का अनुसंधान जिनका राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव हुआ हो।
4. राज्य सरकार के अनुरोध पर किसी सार्वजनिक महत्व के मामलों को अनुसंधान के लिए हाथ में लेना सीबीआई के कार्य हैं।
5. भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों तथा विभिन्न राज्य पुलिस बलों के बीच संवाद स्थापित करना ।
6. अपराध से संबंधित आंकड़ों का अनुरक्षण तथा अपराधी सूचनाओं का प्रसार सीबीआई की यह सभी कार्य है।
सीबीआई भारत सरकार की एक बहू अनुशासित अनुसंधान एजेंसी है जो भ्रष्टाचार आर्थिक अपराध तथा पारंपरिक अपराधियों के अनुसंधान के मामले हाथ में लेती है समानता या केंद्र सरकार केंद्र शासित प्रदेशों तथा उनके लोगों के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के अनुसंधान तक अपने को सीमित रखती है। या हत्या अपहरण बलात्कार आप जैसे गंभीर अपराधों के मामले भी राज्य सरकार द्वारा संदर्भित किए जाने पर हाथ में लेती हैं।
ऐसे मामले उच्चतम न्यायालय-उच्च न्यायालय द्वारा निर्देश प्राप्त होने पर भी हाथ में लेती है। सीबीआई भारत में इंटरपोल के नेशनल सेंट्रल ब्यूरो रूप में भी कार्य करती है
सीबीआई की इंटरपोल शाखा कानून लागू करने वाली भारतीय एजेंसी तथा इंटरपोल के सदस्य देशों के अनुसंधान संबंधित गतिविधियों का समन्वय करती है।
आइए जाने भर्ती तथा सेवा की शर्तें-
अनुच्छेद 309 सांसद व राज्य विधायिका को क्रमशः केंद्र व सरकारों के अधीन लोक सेवाओं के अंतर्गत किसी पद पर नियुक्त व्यक्ति की भर्ती व सेवा शर्तों के नियम करने के लिए शक्तियां प्रदान करता है अर्थात इन कानूनों के बनने तक राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल इन इन मामलों के विनियमन के लिए नियम बना सकते हैं।
किसी भी व्यक्ति की लोक सेवा में भर्ती के तरीकों में शामिल हैं नियुक्त चयन प्रतियोगिता पदोन्नति तथा स्थान तरण द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
एक लोक सेवक की सेवा शर्तों में शामिल हैं-वेतन भत्ते समयबद्ध वेतन वृद्धि अवकाश पदोन्नति कार्यकाल अथवा सेवा समाप्ति स्थानांतरण प्रत्यय युक्त विभिन्न अधिकार अनुशासनात्मक कार्यवाही छुट्टियां कार्य के घंटे और सेवानिवृत्ति के लाभ जैसे जागृति भविष्य का निधि ग्रेच्युटी आदि है।
इस उपबंध के अंतर्गत सांसद अथवा राज्य विधायिका किसी लोक सेवा के मौलिक अधिकारों पर सत्य निष्ठा ईमानदारी दक्षता अनुशासन नेता गोपनीयता कर्तव्यनिष्ठा आदि के हितों के लिए युक्ति युक्त प्रबंध लगा सकती है ऐसे प्रतिबंध केंद्रीय सेवा नियम रेलवे सेवा नियम इत्यादि की आचार संहिता में उल्लेखित हैं।
मतगणना कैसे होती हैं आइए जाने-
जब मतदान संपन्न हो जाता है चुनाव अधिकारी तथा पर्यवेक्षक की देखरेख में मतगणना की प्रक्रिया आरंभ होती है मतगणना समाप्त होने के पश्चात चुनाव अधिकारी सबसे अधिक मत पाने वाले उम्मीदवार का नाम विजई उम्मीदवार के रूप में घोषित करते हैं।
लोकसभा चुनाव फर्स्ट पास्ट द पोस्ट पद्धति के अनुसार कराए जाते हैं देश को चुनाव क्षेत्रों के रूप में अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है। मतदाता एक उम्मीदवार के लिए एक मत देते हैं और सबसे अधिक मत पाने वाला उम्मीदवार विजई घोषित किया जाता है।
राज्य विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनाव की तर्ज पर ही होती हैं जिनमें राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को एकल सदस्य चुनाव क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है।